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नानकमत्ता ने जगाई सामाजिक एकता की अलख

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देवभूमि उत्तराखंड में सामाजिक जागरण का कार्य सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री गुरु नानकदेव जी ने किया। कुमाऊं मंडल के उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर-चंपावत राष्ट्रीय राजमार्ग के पास नानकमत्ता में गुरु महाराज ने जहां सामाजिक एकता की अलख जगाई, वहीं आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा बहाई। नानकमत्ता देवभूमि उत्तराखंड में ऐसा तीर्थ स्थल है, जो सिख पंथ के तीन गुरुओं की आध्यात्मिक और गौरव गाथा से जुड़ा हुआ है। उनके आध्यात्मिक चमत्कारों का पुण्य स्थल है। प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी, छठे गुरु श्री हरिगोबिन्द जी तथा दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी नानकमत्ता आए थे। इसलिए नानकमत्ता को सिख पंथ की त्रिवेणी भी कहा जाता है।

इस पुण्य पवित्र नानकमत्ता तीर्थ का प्राचीन नाम गोरखमत्ता था। जो गुरु नानक देव जी के यहां आगमन के बाद नानकमत्ता हो गया। गुरु नानक देव जी के आने से पहले यहां पर गुरु गोरखनाथ के योगी शिष्य साधना करते थे इसलिए इस स्थान का नाम गोरखमत्ता था। गोरखनाथ के योगी शिष्यों को गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्रदान किया तो इस स्थान का नाम गुरु नानक देव जी के नाम पर नानकमत्ता पड़ गया।

तपस्वी साधक गुरु आशीष कौल बताते हैं कि सन 1524 गुरु नानकदेव जी पंजाब के करतारपुर से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में नानकमत्ता आए थे। पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में भी इस यात्रा का उल्लेख नानक देव जी की तीसरी यात्रा के तौर पर मिलता है। सिख धर्म के जानकार बताते हैं कि अवध के राजकुमार नवाब अली खां ने सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी से प्रभावित होकर नानकमत्ता क्षेत्र की जमीन उन्हें उपहार में दी थीं। इसी स्थान पर गुरु नानकदेव जी ने इन नाथ संप्रदाय के जोगी और नाथों साधुओं को निर्मल ज्ञान और गुरुवाणी का संदेश दिया था।

नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारे के पुण्य पवित्र परिसर में पीपल का वृक्ष है। कहते हैं कि जब इस सूखे पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर गुरु नानक देव जी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्यों को ज्ञान का प्रकाश दे रहे थे। तब यह वृक्ष हरा भरा हो गया। विशाल वृक्ष के पास अखंड दीप जलता है और इस वृक्ष को पीपल साहिब के नाम से पुकारा जाता है। कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी जब इस स्थान पर आए तो उन्होंने इस पीपल के वृक्ष के पत्तों पर केसर के जल का छिड़काव किया तो इस वृक्ष के पत्ते स्वर्ण हो गए थे।

नानकमत्ता में गुरु नानकदेव जी ने नाथ संप्रदाय के सिद्ध योगियों के आग्रह पर स्थानीय किसानों के खेतों तक नदी के प्रवाह को प्रवाहित किया और आज नदी का यह प्रवाह स्थल नानक जी की बाऊली के रूप में प्रसिद्ध है जिसे बाऊली साहिब के नाम से जाना जाता है। यहां पर नानक सागर भी स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार सिखों के छठे गुरु श्री हरिगोबिन्द साहिब के नानकमत्ता आने पर राजा बाज बहादुर उनके दर्शनों को आया और उनकी शरण में चला गया। उन्हें अपना गुरु माना। गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी का गुरुद्वारा नानकमत्ता से दो किलोमीटर की दूरी पर है। इसे गुरुद्वारा छठी पातशाही साहिब के नाम से जाना जाता है।


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