मध्य प्रदेश में अस्पतालों की स्थिति खराब, ‘राइट टू हेल्थ’ लागू करने की आवश्यकता : डॉ पुरोहित
हमारे कम्युनिटी हेल्थ विशेषज्ञ डा. नरेश पुरोहित द्वारा ‘Right to Health’ पर एक कार्यशाला मे चर्चा.
भोपाल/नई दिल्ली: राइट टू हेल्थ योजना किसी जुमले से कम नहीं है। मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालो की भयावह स्थिति है। हकीकत यह है कि मध्य प्रदेश में जरूरत से आधे डॉक्टर भी नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी ज्यादा खराब है। आधे से ज्यादा पीएचसी और सीएचसी बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं ।पैरामेडिकल स्टाफ की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। ऐसे में राइट टू हेल्थ योजना को लागू करने से पहले डॉक्टरों और स्वास्थ्य अमले की भर्ती जरूरी है।
यह जानकारी अखिल भारतीय अस्पताल प्रशासक संघ के कार्यकारी सदस्य डॉ नरेश पुरोहित ने हाल ही में राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय, भोपाल (एनएलआईयू) द्वारा आयोजित एक कार्यशाला मे देते हुए बताया कि स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज व राष्ट्र का निर्माण करता है, पर वोट की राजनीति में लोगों के जीवन से जुड़ा यह विषय पीछे छूट रहा है। छोटी-छोटी बीमारियों के उपचार के लिए मरीजों को दूसरे राज्य भागना पड़ रहा है। उपचार पर भारी-भरकम खर्च की वजह से वह गरीब हो रहे हैं। ध्यान रहे , प्रदेश के साढ़े आठ करोड़ लोगों को ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ प्राप्त होने के पश्चात ही आसानी से मिल सकेगा उपचार।
उन्होने बताया कि मध्य प्रदेश के लोगों को ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ देने की बात लंबे समय से की जा रही है। इसमें हर व्यक्ति का आयुष्मान योजना की तरह ‘कैशलेस’ उपचार, न्यूनतम उपचार की गारंटी, स्वास्थ्य संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण शामिल है। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। लागू करने की तैयारी भी चल रही थी कि सरकार चली गई।
इसके बाद आई भाजपा सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह है कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार में प्रदेश का सरकारी सिस्टम बेहद पिछड़ा है।
कई गंभीर रोगो पर शोध कर चुके शोधार्थी डॉ पुरोहित ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार सही तरीके से लागू किया जाए तो लोगों को बड़ी बीमारियों के उपचार हेतु महानगरो नहीं भागना पड़ेगा।
उन्होने बताया कि इसके लिए सबसे अधिक आवश्यक स्वास्थ्य के बजट में बढ़ोतरी की जाए। वर्ष 2023-24 में राज्य के कुल बजट तीन लाख 14 हजार करोड़ में से स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट 16 हजार करोड़ था जो कुल बजट का पांच प्रतिशत है।
खुलासा करते हुए उन्होने बताया कि स्वास्थ्य का बजट राज्य के कुल बजट का छह प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। बजट कम होने से सरकारी अस्पताल जांच, मशीनरी व अन्य सुविधाओं में निजी क्षेत्र से काफी पीछे हैं।
उन्होंने तथ्यों के आधार पर बताया कि प्रदेश के साढ़ आठ करोड़ लोगों के उपचार के लिए निजी और सरकारी मिलाकर लगभग 24 हजार डाक्टर ही हैं। कारण, डाक्टरों की नई पौध यहां पढ़ाई कर रुकना नहीं चाह रही है। प्रति वर्ष 800 से 1000 डाक्टर एनओसी लेकर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा वर्ष 2013-14 में प्रदेश में 12 मेडिकल कालेज थे, जो अब 27 हो गए हैं। इसके बाद भी राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु से हम बहुत पीछे हैं। उन्होने कहा कि एक तरफ तो सरकारें लोक कल्याणकारी राज्य बातें करती हैं पर स्वास्थ्य जैसी महत्वपूर्ण सेवा भी पीपीपी के माध्यय से निजी हाथों को दी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार सरकारी अस्पताल व सुविधाएं निजी हाथों में नहीं जानी चाहिए।
उन्होने आगे बताया कि सबसे अधिक जरूरी है बीमारियां होने से रोकना। इसके लिए सरकार को प्रदूषण नियंत्रण, स्वच्छ पेयजल, साफ खान-पान को बढ़ावा देना चाहिए। अन्य राज्यों में इसके लिए कई गतिविधियां और कार्यक्रम चलते हैं, पर मप्र इसमें पिछड़ा है। इससे गैर संक्रामक बीमारियों की रोकथाम में सहायता मिलेगी। उन्होने चेताया कि जांच और उपचार के लिए प्रदेश में कोई शोध संस्थान नहीं है। एम्स छोड़ दें तो अन्य सरकारी मेडिकल कालेजों में शोध की गतिविधियां शून्य हैं।
डॉ पुरोहित ने स्पष्ट किया कि प्रदेश में श्योपुर, सतना सहित कुछ जिलों में बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चे मिलते रहे हैं। शिशु मृत्यु दर की भी यह बड़ी वजह है। 15 वर्ष से भी अधिक समय से देश में सबसे अधिक शिशु मृत्यु दर मप्र की है, पर इस पर कोई राजनीतिक दल बात नहीं करता ।
*Dr. Naresh Purohit-MD, DNB, DIH, MHA, MRCP(UK), is an Epidemiologist, and Advisor-National Communicable Disease Control Program of Govt. of India, Madhya Pradesh and several state organizations.)
Dr. Purohit is also an advisor, Indian Hospital Administration.
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