खुशवंत सिंह लिटफेस्ट: किरपाल ने बताया- 1950 के संविधान में शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का अभाव
चंडीगढ़: खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के तीसरे और अंतिम दिन राम जन्मभूमि का मुद्दा छाया रहा। उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और लेखक सौरभ किरपाल से पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा और 21 साल बाद आए अयोध्या राम मंदिर के फैसले पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि इस फैसले को विवाद रहित नहीं माना जा सकता।
किरपाल ने कहा कि न्यायालय का काम कानून के अनुसार अपना फैसला सुनाना है, न कि मध्यस्थ नियुक्त करना। रामजन्म भूमि के मामले में दोनों पक्षों को मनाने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किए गए थे, जैसे कि शाहिनबाग मामले में भी किया गया।
“सम इंडियन आर मोर इक्वल देन अदर्स” पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय न्यायालय को कानून व्यवस्था बिगड़ने की चिंता थी, और न्यायालय ने इसे लेकर पुलिस को भी आगाह किया था। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी 1950 को लागू हुए संविधान में शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन देश में पहले चुनाव के बाद इसे लागू किया गया। किरपाल ने यह भी कहा कि मुस्लिम कानून में अब तक कोई संशोधन नहीं हुआ है, जिससे मुस्लिम महिलाओं को समानता नहीं मिल पा रही है।
विकसित भारत बनाने के लिए तीन चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, जी-20 सम्मेलन के शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि 2047 तक स्थिरता लाना, इलेक्ट्रिक मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना, और नई सेना तैयार करना आवश्यक होगा।
पूर्व सेना जनरल केजे सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के तीन आर्मी चीफ ने भारत को युद्ध में झोंका, और पाकिस्तान में वर्तमान हालात के लिए पूर्व आर्मी चीफ जियाउल हक जिम्मेदार हैं। अधिवक्ता रोहिन भट्ट ने चर्चा में बताया कि राजनीति कई बार न्यायपालिका पर हावी हो जाती है। प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक ने हड़प्पा संस्कृति के बारे में अपनी किताब “अहिंसा” पर चर्चा करते हुए कहा कि हड़प्पा के लोग व्यापार के लिए आए थे और वहां के अवशेष व्यापारियों के हैं।
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