News around you

देश में अंगदान महज चार दिवारी तक है सीमित: डॉ नरेश पुरोहित

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ *डॉ नरेश पुरोहित, (सलाहकार राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) भारत में अंगदान प्राप्ति की आस में स्वर्गलोक जाने वाले रोगियों और अंगदान करने वालों की संख्या का विश्लेषण करते हुए

136

नई दिल्ली/भोपाल: जनसंख्या में अग्रणी राष्ट्र का अंगदान द्वारा जीवनदान की प्रक्रिया में पिछड़ापन चिंतित करने वाला है। भारत में अंगदान की दर स्पेन जैसे छोटे राष्ट्र की तुलना में बहुत कम है। देश में प्रतिवर्ष पांच लाख लोगों का जीवन बचाने के लिए विभिन्न अंगों की आवश्यकता रहती है। मगर देश में इस प्रक्रिया से मात्र बावन हजार अंग प्राप्त हो रहे हैं। देश में अंगदान प्राप्ति की आस में चिकित्सा लाभ ले रहे लगभग चालीस हजार मरीज प्रतिवर्ष प्रतीक्षा करते-करते मौत के मुख में समा जाते हैं। इनका जीवन बचाया जा सकता है। आवश्यकता है तो सार्थक प्रयासों की, जागरूकता और अंगदान के लिए स्थानीय स्तर पर आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करने की।

देश में अंगदान को प्रेरित करने के लिए जागरूक नागरिक और सामाजिक संस्थाएं काम कर रही हैं। मगर अक्सर शासकीय अस्पतालों और मेडिकल कालेजों से पर्याप्त सहयोग न मिल पाने के कारण भी अंगदान के प्रयास सफल नहीं हो पाते हैं। नेत्रदान के लिए देश में शहरों से लेकर ग्रामीण अंचल तक जागरूकता आई है। मृतक के परिवार सामाजिक संस्थाओं की छोटी-सी समझाइश पर नेत्रदान के लिए तैयार होने लगे हैं। मगर कई बार स्थानीय स्तर पर शासकीय चिकित्सकों की अरुचि पूरे अभियान को विफल कर देती है।

नेत्रदान के लिए मृतक के मृत्यु प्रमाण-पत्र की आवश्यकता और समय पर नेत्र चिकित्सक की अनुपलब्धता से भी नेत्रदान में रुकावट पैदा हो जाती है। जबकि नेत्र निकालना एक आसान प्रक्रिया है, जिसे नेत्र विशेषज्ञ के अलावा प्रशिक्षित नर्सिंग और पैरामेडिकल के कर्मचारी भी कर सकते हैं। कुछ राज्यों ने सामाजिक संस्थाओं के आग्रह पर यह अनुमति पैरामेडिकल कर्मचारियों को उपलब्ध कराई है। मगर कई राज्यों में अब भी इसे मात्र नेत्र विशेषज्ञ की अनिवार्य उपस्थिति जैसे जटिल नियम से बांधे रखा गया है। भारत में प्रतिवर्ष दो लाख व्यक्तियों को कोर्निया दान की आवश्यकता है, मगर दान प्रक्रिया का सख्त विधान और जागरूकता के अभाव में मात्र पचास हजार की उपलब्धता संभव हो पा रही है।

देश में प्रतिवर्ष पीड़ित मरीजों के जीवनदान के लिए 50 हजार लिवर और 50 हजार किडनी की आवश्यकता है, मगर बमुश्किल 1700 किडनी और 700 लिवर उपलब्ध हो पा रहे हैं। मस्तिक मृत्यु (ब्रेन डेड) के अलावा दुर्घटना में मृत व्यतियों के नेत्र, त्वचा और कुछ अन्य अंगों का दान संभव होता है, लेकिन इसमें मृत्यु उपरांत अनिवार्य पोस्टमार्टम का प्रावधान मृतक परिवार की इच्छा के बावजूद अंगदान को रोक लेता है। नेत्र, त्वचा आदि का दान मृत्यु के चार से छह घंटे की अवधि में किया जा सकता है। सामाजिक संगठनों के प्रयास और शासकीय मशीनरी द्वारा संसाधनों और डाक्टरों की त्वरित उपलब्धता तथा इच्छाशक्ति इस जनसंख्या बहुल राष्ट्र को अंगदान की सर्वोच्च ऊंचाई दे सकता है।

अभी हालत यह है कि अंगदान में देश यूरोपीय देशों की तुलना में पचास पायदान नीचे है। ‘इंटरनेशनल रजिस्ट्री इन आर्गन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन’ की रपट के मुताबिक अमेरिका में मृत्यु पश्चात अंगदान करने वालों कि संख्या प्रति दस लाख पर इकतालीस है, जबकि भारत में यह स्थिति 0.04 पर ठहर जाती है। देश में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं, जबकि इनमें से सत्तर फीसद घायल मस्तिक मृत्यु का शिकार होते हैं, जिनके अंगदान की अनुकूलता रहती है। देश में पुराने अंगदान अधिनियम 1994 में अंगदान सिर्फ उन्हीं अस्पातालों में संभव था, जहां प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध होती थी। मगर 2011 में कानून में संशोधन करके इसे उन सभी अस्पतालों में व्यापक किया गया है, जिनमें ‘आइसीयू’ उपलब्ध है।

देश में 600 मेडिकल कालेज सहित विभिन्न राज्यों में बीस ‘एम्स’ हैं। मेडिकल कालेजों से अंगदान प्राप्त कर राज्यों के एम्स अस्पतालों में प्रत्यारोपण कराने का देश में कार्यक्रम तय किया जाए, तो दान के आंकड़ों में आश्चर्यजनक वृद्धि हो सकती है। भारत सरकार ने वर्ष 2019 में लगभग 149.5 करोड़ के बजट से राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम तय किया था। राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) इस दिशा में कार्यरत है। मगर उसके कार्यक्रम मात्र प्रचार के होकर चारदिवारी तक ही सीमित है। मस्तिक मृत्यु की स्थिति में मरीज को अंगदान के लिए मरीज को जीवन रक्षक प्रणाली पर रखना आवश्यक है। लेकिन यह प्रणाली महंगी है और उसका खर्च भी मरीज के परिजनों से ही वसूला जाता है। इससे परिजन तुरंत जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की बात करते हैं। अगर जीवन रक्षक प्रणाली के खर्च का जिम्मा सरकार अपने कंधों पर ले ले तो अंगदान में आश्चर्यजनक वृद्धि संभव है।
अंगदान के चार घंटे की अवधि में हृदय और फेफड़े, आठ घंटे में लिवर, बारह घंटे में अग्नाशय और चौबीस घंटे में किडनी प्रत्यारोपित हो सकती है। मगर इसके लिए अंगदान कराने और प्रत्यारोपण करने वाले अस्पताल के बीच दूरी तय करने के लिए हवाई एंबुलेंस या हरित गलियारा बनाने की आवश्यकता होती है। इसमें राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन की रुचि और प्राथमिकता की आवश्यकता होती है। यह प्रक्रिया बहुत आसान है। मृत शरीर में कोई बड़ी शल्य चिकित्सा भी नहीं होती है। स्थानीय स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामाजिक संगठन मृतक परिवार की सहमति से छह घंटे की मृत्यु अवधि में कार्य संपन्न कर सकते हैं। इस दिशा में राज्य सरकारों की सक्रियता और जटिल कानूनी प्रक्रिया में शिथिलता की आवश्यकता है। अनेक दफा यह भी होता है परिवार स्वयं नेत्रदान और त्वचादान के लिए पहल करता है, लेकिन समय पर विशेषज्ञ डाक्टर और संसाधन उपलब्ध न होने से दान प्रक्रिया संपन्न नहीं हो पाती है।

देश में केंद्र सहित राज्य सरकारें जिला प्रशासन को प्रतिवर्ष अंधत्व निवारण हेतु बजट आबंटित करती हैं। देश में अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक शासकीय जिला अस्पताल और मेडिकल कालेज में अंगदान के लिए सलाहकार पद न केवल स्थापित होना चहिए, बल्कि प्रशिक्षित विभाग, जो अंगदान की सूचना प्राप्त होते ही प्राथमिकता से कार्य में जुट सके, शासकीय चिकित्सा संस्थानों में नियुक्त किया जाना चहिए। अंगदान को व्यापक बनाने के लिए इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ अंगदान करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन और शासकीय लाभ की योजनाओं में शामिल करने तथा प्रशासन द्वारा उनका सार्वजनिक सम्मान भी किया जाना चहिए। शासकीय कार्यालयों, अस्पतालों पर अंगदान को विज्ञापित करने से भी जागरूकता में वृद्धि की जा सकती है।

वर्ष 2022 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के आंकड़ों पर गौर करें, तो तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट और मध्यप्रदेश को छोड़ कर अन्य राज्यों के परिणाम निराशाजनक ही हैं। गोवा, हिमाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, सिक्कम अब भी जीवन रक्षक अंगों के दान में शून्य की स्थिति में हैं, जबकि दूसरे कुछ राज्य किडनी को छोड़ अन्य जीवन रक्षक अंगदान के लिए संसाधन विकसित करने में रुचि भी नहीं ले पा रहे हैं। संपूर्ण देश में अंगदान के लिए जागरण और स्थानीय स्तर पर संसाधन विकसित करने की आवश्यकता है |


*डॉ नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।


Discover more from News On Radar India

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

You might also like

Comments are closed.