पराली प्रबंधन पर विशेषज्ञों का संवाद: किसानों का अनुदान दोगुना हो, खेत में हो पराली का समाधान
दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा पर प्रदूषण का संकट
हर साल पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का मुद्दा गहराता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि पराली का सबसे बेहतर समाधान किसानों के खेत में ही है। अमर उजाला के संवाद में कृषि और पर्यावरण के विशेषज्ञों ने इस समस्या के समाधान के कई व्यावहारिक सुझाव दिए।
खेत में पराली का निस्तारण सबसे प्रभावी समाधान
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर ने बताया कि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को पूरी तरह रोकना व्यावहारिक नहीं है। पराली को खेत में ही मिट्टी में मिलाना सबसे बेहतर उपाय हो सकता है।
सरकारी सहयोग जरूरी: यदि सरकार अक्टूबर में ही किसानों के खाते में 2000 रुपये डाल दे और उन्हें सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट या एमबी प्लोग मशीन उपलब्ध कराए, तो किसान 15 दिन में खेत में ही पराली का प्रबंधन कर सकते हैं।
धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच समय की कमी
धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच का समय बेहद कम होता है।
पराली को खेत से निकालकर अन्य उपयोगों में लगाना मुश्किल है।
मशीनों की ऊंची लागत: किसान नेता रतन मान ने कहा कि पराली प्रबंधन की 25 लाख रुपये की मशीनें छोटे किसानों की पहुंच से बाहर हैं।
प्रदूषण और पर्यावरण पर प्रभाव
प्रो. रविंद्र खैवाल ने बताया कि धान की पराली में कीटनाशकों का स्प्रे होता है। इसे जलाने पर निकलने वाला धुआं बेहद जहरीला होता है और साइनाइड के बराबर खतरनाक साबित हो सकता है।
प्रदूषण में कमी: कृषि के संयुक्त सचिव डॉ. जसविंदर सिंह ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार पराली जलाने के 50% कम मामले दर्ज हुए हैं।
बागवानी और सामूहिक प्रयास का सुझाव
डॉ. मनोज कुंडू (बागवानी निदेशक) ने कहा कि अगर कुछ किसान धान की खेती छोड़कर बागवानी अपनाएं, तो इससे प्रदूषण में कमी आ सकती है।
प्रो. सुमर मोर ने किसानों को एक मंच पर आकर सामूहिक प्रयास करने और गांवों को रोल मॉडल बनाने की अपील की।
पराली प्रबंधन के लिए समाधान
सरकारी अनुदान: किसानों को समय पर आर्थिक सहायता।
सस्ती मशीनें: छोटे किसानों के लिए किफायती पराली प्रबंधन उपकरण।
सामूहिक प्रयास: गांव स्तर पर पराली प्रबंधन के लिए जागरूकता और सहयोग।
फसल परिवर्तन: धान के विकल्प के रूप में बागवानी को बढ़ावा देना।