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देश के सामने पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बचाने की कड़ी चुनौती

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ *डॉ नरेश पुरोहित, (विजिटिंग प्रोफेसर, एनआईआरईएच, भोपाल) पर्यावरण की बढ़ती चुनौतियों पर विस्तृत जानकारी के साथ

भोपाल /नई दिल्ली : आज भी विकासशील देशों में अधिकांश ग्रामीण घरों में खाना पकाने के लिए दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी मिट्टी का तेल, लकड़ी, फसलों के अवशेषों, गोबर और कोयला आदि इस्तेमाल करती है, जो कि घरों में हानिकारक वायु प्रदूषण का कारण बनता है। ग्रामीण परिवेश में किए शोध और आंकड़े बताते हैं कि यह खतरा बुजुर्ग और अधेड़ महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक है। कोयले के संपर्क में रहने वाली महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम दोगुना होता है।
प्रदूषण सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन बुजुर्गों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उन पर और अधेड़ उम्र की महिलाओं के स्वास्थ्य पर घातक असर डाल रहा है।
शहरों के साथ ग्रामीण इलाकों में भी प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है।
भारत में वायु प्रदूषण से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विश्व की लगभग पूरी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है, जिसमें प्रदूषक तत्त्व तय दिशा-निर्देशों की सीमा से कहीं अधिक है। 2019 में इसकी वजह से करीब 67 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। यों प्रदूषण सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन बुजुर्गों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उन पर और अधेड़ उम्र की महिलाओं के स्वास्थ्य पर यह घातक असर डाल रहा है।

वायु प्रदूषण से कुछ गंभीर रोग भी तेजी से बढ़े हैं ।बुजुर्ग महिलाएं अपना अधिकांश समय घरों के भीतर व्यतीत करती हैं। मगर वे घर के भीतर भी वायु प्रदूषण से जूझ रही हैं। प्रदूषण के कारण उनमें नेत्र, त्वचा, नाक, गले में खुजली, चक्कर आना, थकान, रक्तचाप, चिड़चिड़ापन, अवसाद, अनिद्रा, बहरापन, मानसिक रोग, पेट संबंधी रोगों में लगातार इजाफा हो रहा है। हाल में हुए शोध बताते हैं कि वायु प्रदूषण से कुछ गंभीर रोग भी तेजी से बढ़े हैं, जो बुजुर्ग महिलाओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं।

भारत में हर एक हजार में बीस बुजुर्ग डिमेंशिया के शिकार होते है।चिकित्सक मानते हैं कि वायु प्रदूषण से फेफड़े और दिल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। अध्ययन बताते हैं कि भारत में हर एक हजार में से बीस बुजुर्ग वायु प्रदूषण से मनोभ्रंश के शिकार हुए हैं। बुजुर्ग महिलाओं में इसका प्रसार अधिक बताया गया है। ‘इंपीरियल’ के पर्यावरण अनुसंधान समूह के प्रमुख और लेखक, प्रोफेसर फ्रैंक केली के अनुसार इक्कीसवीं सदी में स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल के लिए डिमेंशिया सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक है। येल और पेकिंग विश्वविद्यालय में संयुक्त रूप से हुए एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण मस्तिष्क भी प्रभावित होता है।
इसमें सबसे ज्यादा बुजुर्गों के मस्तिष्क को हानि पहुंचती है। अध्ययन के मुख्य लेखक जियाबो जैंग का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण लोगों की बोलने की क्षमता ज्यादा प्रभावित होती है। दिमाग पर वायु प्रदूषण का इतना बुरा असर होता है कि बहुत से लोग बोलने के लिए शब्द तक मुंह से नहीं निकाल पाते हैं। इस अध्ययन में कहा गया है कि अगर कोई इंसान लंबे समय तक वायु प्रदूषण की चपेट में रहता है, तो उसकी अनुभूति की क्षमता ज्यादा प्रभावित होती है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘मेलमैन स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ’ के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में बढ़ता वायु प्रदूषण महिलाओं की हड्डियों के लिए भी खतरनाक है।
अध्ययन के अनुसार बढ़ती उम्र में वायु प्रदूषण का संपर्क महिलाओं में ‘बोन मिनरल डेंसिटी’ में कमी के साथ आस्टियोपोरोसिस से भी जुड़ा है। इसकी वजह से हड्डियों के टूटने का जोखिम बढ़ जाता है। इससे पहले भी शोध में इस बात के सबूत सामने आए थे कि वायु प्रदूषण महिलाओं की हड्डियों के लिए खतरनाक हो सकता है।

जब कभी वायु प्रदूषण की बात उठती है तो घरेलू वायु प्रदूषण को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, जबकि घरेलू वायु प्रदूषण कई तरह की जानलेवा बीमारियों की वजह है। अंदरूनी हवा उतनी ही विषैली होती है, जितनी कि बाहरी। शहरी परिवेश के साथ ग्रामीण परिवेश में भी घरों में मौजूद वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। ‘जर्नल बीएमसी’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जो महिलाएं अपने घरों में वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं, उनमें याददाश्त, रोजमर्रा के कामों को करने की क्षमता, तार्किक और बौद्धिक क्षमता अन्य महिलाओं की तुलना में कम है।

मेडिकल जर्नल ‘ट्रांसलेशनल साइकेट्री’ द्वारा 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि वृद्ध महिलाएं, जो उच्च स्तर के बारीक कण वाले पदार्थ सहित प्रदूषित क्षेत्रों में रहती हैं, वे तेजी से उम्र बढ़ने और दिमाग की कमजोरी का अनुभव करती हैं। उनमें मनोभ्रंश और अल्झाइमर जैसी बीमारियों के लक्षण देखने को मिले। स्पेन के बार्सिलोना में ‘यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस’ में प्रस्तुत किए गए नए अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं के लिए डीजल के धुएं में सांस लेना जानलेवा हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने डीजल निकास के संपर्क में आने से लोगों के खून में बदलाव की बात कही है। इससे महिलाओं में सूजन, संक्रमण और हृदय रोग से संबंधित रक्त के घटकों में परिवर्तन पाए गए हैं। शोध के मुताबिक फेफड़ों के कैंसर के लगभग दस में से एक मामले के लिए बाहरी वायु प्रदूषण एक कारण हो सकता है। वायु प्रदूषण के कण कोशिकाओं में डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे कैंसर का जोखिम हो सकता है।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के नेतृत्व में एक अध्ययन में पाया गया कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से बुजुर्गों में अवसाद का खतरा बढ़ सकता है। सिर्फ पांच दिनों तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से बुजुर्ग महिलाओं में आघात का खतरा बढ़ सकता है।

शोध बताते हैं कि वायु प्रदूषण के सूक्ष्म कणों के संपर्क में लंबे समय तक रहने से रजोनिवृत्ति के बाद की महिला में हृदय संबंधी रोग के जोखिम और मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि स्तन कैंसर की घटनाओं में सबसे अधिक वृद्धि उन महिलाओं में पाई गई, जिनका संपर्क ‘पार्टिकुलेट मैटर’ स्तर पीएम 2.5 से अधिक था। मोटर वाहन से निकलने वाले धुंए, तेल कोयला जलाने या लकड़ी के धुंए आदि में पीएम 2.5 अधिक होता है। बुजुर्ग महिलाएं पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होती हैं। उन्हें उन खतरों के बारे में पता होना चाहिए कि उनकी हवा कितनी खराब हो सकती है। इसे कम करने और इससे खुद को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है।
वे जहां रहती हैं, वहां वायु की गुणवत्ता की दैनिक आधार पर निगरानी करें। जहां प्रदूषण अधिक है, वहां न जाएं। औद्योगिक प्रदूषण वाली जगहों से दूर रहें। घर में खाना पकाने और रोशनी के लिए स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करें। रसोई का क्षेत्र अच्छी तरह हवादार हो। स्टोव, चिमनी और अन्य उपकरणों का रखरखाव करें, ताकि वे कुशलतापूर्वक ईंधन जला सकें। भवन और पेंट उत्पाद, सफाई और घरेलू रसायनों सहित इनडोर प्रदूषकों के अन्य सामान स्रोतों से सावधान रहें। हमारे बुजुर्ग जितने स्वस्थ होंगे, वायु प्रदूषण के संपर्क के बाद स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं उत्पन्न होने की संभावना उतनी ही कम होंगी |

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*Dr. Naresh Purohit-MD, DNB, DIH, MHA, MRCP(UK), is an Epidemiologist, Advisor-National Communicable Disease Control Program of Govt. of India, Madhya Pradesh and several state organizations.) He’s visiting Professor, National Institue of Research on Environmental Health, Bhopal. 

Dr.  Purohit is also Principal Investigator for the Association of Studies For Kidney Care..

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