सुधारनी होगी देश के स्वास्थ्य केंद्रों की सेहत : डाॅ नरेश पुरोहित
हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ *डाॅ नरेश पुरोहित, (कार्यकारी सदस्य, अखिल भारतीय अस्पताल प्रशासक संघ), देश के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाओं की जांच रिपोर्ट पेश करते हुए!
नई दिल्ली/ भोपाल : यह किसी से छिपा नहीं कि अपने देश में बीमारियों का एक बड़ा कारण सेहत के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही है। सेहत व्यक्ति समाज और देश की सबसे बड़ी पूंजी होती है । चूंकि रोगों का बड़ा कारण खराब जीवनशैली के साथ खान-पान भी है इसलिए खाद्य एवं पेय पदार्थों की गुणवत्ता सुधारने का भी काम करना होगा ।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने ग्राम स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों में टीबी, एचआईवी, डेंगू, इंसेफ्लाइटिस, हेपेटाइटिस बी आदि रोगों की जांच की सुविधा उपलब्ध कराने का जो सुझाव दिया, वह केवल क्रियान्वित ही नहीं होना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि स्थानीय स्तर पर ही अधिक से अधिक रोगों की पहचान हो सके।
यदि रोग की पहचान प्रारंभिक चरण में ही हो जाती है तो न केवल उसका उपचार आसान हो जाता है, बल्कि उसमें लगने वाले खर्च में कमी भी आती है। यदि रोगों की पहचान स्थानीय स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों में हो सके तो शहरों के बड़े अस्पतालों में रोगियों की भीड़ भी कम करने में मदद मिल सकती है।
नीति-नियंताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि जितनी आवश्यकता आधुनिक सुविधाओं से लैस बड़े अस्पतालों का निर्माण करने की है, उतनी ही स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को सक्षम बनाने की भी।
चूंकि अभी प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में गंभीर रोगों की जांच की विश्वसनीय व्यवस्था नहीं है, इसलिए रोगियों को शहरों की दौड़ लगानी पड़ती है। इसमें समय और धन की बर्बादी होती है और कई बार उपचार में देर भी हो जाती है। इसके चलते रोगों के निदान में लंबा समय लगता है।
यह अच्छा है कि आईसीएमआर ने ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को उन्नत बनाने की पैरवी की , लेकिन उसे इससे परिचित होना चाहिए कि कस्बों और छोटे शहरों के स्वास्थ्य केंद्रों में भी रोग परीक्षण उपकरणों का अभाव दिखता है। कई बार ये उपकरण होते भी हैं तो काम नहीं कर रहे होते।
इसका एक कारण प्रशिक्षित मेडिकल कर्मियों का अभाव भी है। इसके चलते ही जिला अस्पतालों में रोगियों की भीड़ दिखती है। विडंबना यह है कि प्रायः वे भी समुचित मेडिकल उपकरणों से जूझते दिखते हैं। इसका संकेत आईसीएमआर के इस सुझाव से मिलता है कि जिला स्तर के अस्पतालों में सीटी स्कैन, एमआरआई, मैमोग्राफी आदि की सुविधा होनी चाहिए।
इसका अर्थ है कि अभी ये सुविधाएं जिला अस्पतालों में नहीं हैं। शायद यही कारण है कि लोग मजबूरी में ही सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में जाते हैं। यदि स्वस्थ भारत के सपने को साकार करना है तो स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों को प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक सुविधाओं और प्रशिक्षित मेडिकल कर्मियों से लैस करना होगा।
यह काम करने के साथ ही लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता लाने के भी जतन करने होंगे। यह किसी से छिपा नहीं कि अपने देश में
बीमारियों का एक बड़ा कारण सेहत के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही है। सेहत व्यक्ति, समाज और देश की सबसे बड़ी पूंजी होती है। चूंकि रोगों का बड़ा कारण खराब जीवनशैली के साथ खान-पान भी है, इसलिए खाद्य एवं पेय पदार्थों की गुणवत्ता सुधारने का भी काम करना होगा।
*डॉ नरेश पुरोहित: MD, DNB, DIH, MHA, MRCP(UK), (सलाहकार – राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम ) एक एंडियोमोलॉज, राष्ट्रीय संक्रमण रोग रोकथाम प्रोग्राम के सलाहकार हैं। वे हॉस्पिटल मैनेजमेंट एसोसिएशन के तथा किडनी केयर स्टडी एसोसिएशन के मुख्य निरीक्षक भी हैं |
डॉ पुरोहित कैंसर रिसर्च से संबंधित केंद्रीय विभाग के एडवाइजर भी हैं |
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