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मानव स्वास्थ्य हेतु रामबाण है, 45 दिन का ‘कल्पवास’

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डॉ नरेश पुरोहित, मानद प्राध्यापक, 45 दिन के कल्पवास का स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमताओं पर प्रभाव के पर प्रकाश डालते हुए

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प्रयागराज / पुणे: कुंभ मेला केवल आत्मा को ही शुद्ध नहीं करता है। इसका मानव शरीर के लिए भी गहरा महत्व है। वैज्ञानिकों का मत है कि कल्पवास की 45 दिन की परंपरा लोगों की प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करती है। इस बार वैज्ञानिक मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कल्पवास के समग्र प्रभाव का भी अध्ययन करेंगे।

अध्ययन की रूपरेखा : भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए जा रहे अध्ययन में कुंभ में कल्पवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वैज्ञानिक रूप से दस्तावेज तैयार किया जाएगा। इस दौरान शोधकर्ता नदी के पानी और मिट्टी के नमूने एकत्र करेंगे और उनकी भौतिक, रासायनिक और सूक्ष्मजीव संबंधी विशेषताओं का अध्ययन करेंगे। 1,080 कल्पवासियों के मेडिकल चेक-अप और रक्त परीक्षण के माध्यम से स्वास्थ्य पर प्रभाव का विश्लेषण किया जाएगा।
मूल्यांकन रोग प्रतिरोध शक्ति के 14 संकेतकों पर आधारित होगा, जिसमें तनाव और खुशी के हार्मोन (कार्टिसोल, डोपामाइन और सेरोटोनिन) शामिल हैं। इसके अलावा, वैज्ञानिक बड़े पैमाने पर धार्मिक सभा के भू-खगोलीय महत्व का भी अध्ययन करेंगे।

प्रतिरोधक क्षमता: मानव प्राकृतिक रूप से एंटीजन (जीवाणुओं) को छोड़ता और उपभोग करता है। यह प्रक्रिया अपने चरम पर तब होती है जब कल्पवासी स्नान करते हैं। सूक्ष्म जीवों की इस अदला-बदली की प्रक्रिया तब व्यापक स्तर पर होती है जब एक के बाद एक हजारों लोग स्नान करते हैं।
इस प्रक्रिया से कल्पवासियों का प्रतिरक्षी तंत्र मजबूत होता है।
इंसानों के बीच सूक्ष्म जीवों के इस अदला-बदली की प्रक्रिया जैसे ही शुरू होती है, तो शरीर इस प्रक्रिया का प्रतिरोध करता है। हमारे शरीर में मौजूद प्रतिरक्षी तंत्र नए एंटीजेन का प्रतिरोध करते हैं, इस क्रम में शरीर के अंदर एंटीबॉडी विकसित होते हैं। इस तरह से बीमारियों के खिलाफ शरीर मजबूत हो जाता है।

महत्व:  पुराणों और धर्मशास्त्रों में इसे आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। मत्स्यपुराण के मुताबिक कल्पवास का अर्थ संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना है। पद्म पुराण में इसका वर्णन करते हुए कहा गया है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शांत मन वाला और जितेन्द्रिय होना चाहिए।
यह है कल्पवास का नियम: 
1. दिन में सोना नहीं,  2. शृंगार से दूर रहना, 3. ब्रह्मचर्य का पालन करना, 4. रात में सोने से पहले जप करना, 5. प्रतिदिन यथासंभव दान-पुण्य करना। 6. 24 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन करना, 7. सुख हो या दुख मेला क्षेत्र छोड़कर जाना नहीं, 8. भोजन बिना तेल-मसाला का सात्विक होना चाहिए, 9. जमीन में सोना। हर प्रकार की सुख- सुविधाओं से दूर रहना, 10. खाली समय पर सोने के बजाय धार्मिक पुस्तकों का पाठ करना, 11. हमेशा सत्य बोलना। मन में किसी के प्रति गलत विचार न लाना, 12. 24 घंटे में कम से कम चार घंटे प्रवचन सुनना। शालीन वस्त्र धारण करना, 13. प्रतिदिन संतों को भोजन कराने के पश्चात कुछ खाना केवल गंगा जल का पान करना, 14. मन में लोभ, मोह, छल व कपट का भाव न लाना। सगे-संबंधियों से दूर रहना, 15. शिविर के बाहर जौ व तुलसी का पौधा लगाना, जाते समय उसे प्रसाद स्वरूप साथ लेकर जाना, 16. 24 घंटे में तीन बार गंगा स्नान करना होता है। पहला स्नान सूर्योदय से पूर्व, दूसरा दोपहर व तीसरा शाम को होता है।

मेला क्षेत्र में एक बार प्रवेश करने पर कल्पवासी घर का मोह छोड़ देते हैं। कोई मरे या पैदा हो उससे उनका कोई वास्ता नहीं होता।

यह ध्यान रहे विरले लोगों को ही कल्पवास करने का सौभाग्य मिलता है। इसके अपने नियम, कानून और संस्कार हैं, जिसका पूरे समर्पण से पालन करना होता हैं ।

उम्र की नहीं कोई बाधा :  कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि संसारी मोह- माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए।

वैज्ञानिक कसौटी पर कल्‍पवास : कल्‍पवास को यदि वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाए तो पता चलता है कि हमारा शरीर जब रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया, वायरस जैसे सूक्ष्मजीवों केसंपर्क में आते हैं तो हमारा शरीर उनके खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। एंटीबॉडी प्रोटीन के बने वे कण हैं जो हमारे शरीर की कोशिकाओं में बनते हैं और बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं।
कुंभ स्नान और कल्पवास के जरिए कल्पवासियों का शरीर पहले तो प्रकृति में कल्पवास करने आए दूसरे कल्पवासियों के शरीर में मौजूद नए रोगों और रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनके शरीरों में इन रोगों के खिलाफ एंटीबॉडीज बननी शुरू हो जाती हैं। बार-बार स्नान करने से शुरूआती दिनों में ही शरीर में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी बनती हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि शरीर में रोग पनप नहीं पाता बल्कि उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने लगती है। इस तरह से डेंगू, चिकनगुनिया, टीबी और ऐसी दूसरी बीमारियों के खिलाफ शरीर मजबूत हो जाता है।

*डॉ .नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।

डॉ . पुरोहित,  राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान (एन.आई.एन) , पुणे के  मानद प्राध्यापक भी  हैं।


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