पंजाब में भाजपा के लिए चुनौती: 38% हिंदू आबादी का समर्थन नहीं, मोदी मैजिक भी फेल
शिरोमणि अकाली दल से अलग होने के बाद भाजपा की राह मुश्किल, कांग्रेस-आप में बंटे हिंदू वोट
पंजाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का संघर्ष जारी है। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति अपनाई, लेकिन विधानसभा, लोकसभा और उपचुनाव में पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा। कृषि कानूनों के चलते गठबंधन टूटने से भाजपा को न सिर्फ अकाली समर्थकों का नुकसान हुआ, बल्कि अंदरूनी गुटबाजी और हिंदू वोट बैंक पर पकड़ कमजोर होने के कारण भी पार्टी को झटका लगा।
भाजपा के सामने पंजाब की राजनीतिक चुनौतियां
- 38% हिंदू आबादी का भाजपा से दूरी:
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में हिंदुओं की आबादी 38.5% है। राज्य के 45 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता प्रमुख हैं, लेकिन यहां भी भाजपा का प्रभाव कमजोर है।
- अकाली गठबंधन का टूटना:
शिअद से अलगाव के बाद भाजपा ने 2022 में 73 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 2 सीटों पर जीत दर्ज की।
- हिंदू वोट कांग्रेस और आप में बंटे:
शहरी हिंदू वोटर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ चले गए, जिससे भाजपा का ग्राफ गिरा।
- गुटबाजी का प्रभाव:
पार्टी के अंदर नेतृत्व की खींचतान और कमजोर प्रचार रणनीतियों ने भी नुकसान पहुंचाया।
- भविष्य की चुनौती:
भाजपा को राज्य में अपनी पहचान बनाने और हिंदू वोटर्स को फिर से जोड़ने के लिए लंबा संघर्ष करना होगा।
पंजाब विश्वविद्यालय की राय
पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष कुमार के अनुसार, “भाजपा हमेशा से अकाली दल पर निर्भर रही है। उसे अपने दम पर राज्य में पैर जमाने के लिए समय चाहिए। कांग्रेस और आप में बंटे हिंदू वोटों और नए परिसीमन के चलते पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हुआ है।”
भाजपा की उम्मीदें और रणनीति
भाजपा के पंजाब उपाध्यक्ष अरविंद खन्ना ने कहा, “पार्टी का लोकसभा चुनाव में वोट शेयर बढ़ा है। 2027 के लिए पूरी तैयारी के साथ पार्टी मैदान में है, और हमें अच्छे नतीजे मिलने की उम्मीद है।”
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