डॉ. नरेश पुरोहित: सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की दुर्दशा पर उठते रहे है सवाल ?
हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ *डॉ नरेश पुरोहित, (कार्यकारी सदस्य अखिल भारतीय अस्पताल प्रशासक संघ) देश में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का विश्लेषण करते हुए
नई दिल्ली/ भोपाल: भारत में चिकित्सकों की कमी को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे रेखांकित किया है। दरअसल, अदालत ने मेडिकल कालेजों के चिकित्सा पाठ्यक्रमों में खाली पड़ी सीटों को हाल ही में भरने का निर्देश देते हुए कहा है कि देश में डाक्टरों की पहले ही इतनी कमी है, उसमें सीटें बर्बाद नहीं होनी चाहिए एवं उन सीटों को शीघ्र भरा जाए।
लगभग सभी अस्पतालों में चिकित्सकों के बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं। इस मामले में देश के ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों की दशा सबसे खराब है।
सरकार ने खुद स्वीकार किया था कि मार्च 2022 तक ग्रामीण क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सर्जन, चिकित्सकों, स्त्री रोग विशेषज्ञों और बाल रोग विशेषज्ञों की लगभग अस्सी फीसद कमी थी। यूनेस्को भी कई बार बता चुका है कि भारत में एक हजार लोगों पर एक से भी कम चिकित्सक हैं। ऐसी स्थिति में, अगर चिकित्सक तैयार ही नहीं होंगे, तो इस कमी को पूरा कैसे किया जा सकेगा। हालांकि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों की कमी के अन्य कई कारण भी स्पष्ट हैं।
पहले तर्क दिया जाता था कि हमारे यहां इसलिए जरूरत के मुताबिक योग्य चिकित्सक नहीं तैयार हो पा रहे कि क्योकि मेडिकल कालेजों में सीटें बहुत कम हैं। इसके मद्देनजर कुछ नए कालेज खोले गए और सभी कालेजों में सीटें बढ़ा दी गईं। इस तरह पिछले दस वर्षों में चिकित्सा पाठ्यक्रमों में सीटें बढ़ कर करीब दोगुनी हो गई हैं।
इसके अलावा हर वर्ष हजारों विद्यार्थी विदेशी संस्थानों से पढ़ाई करके वापस लौटते हैं। फिर, निजी अस्पतालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उनमें चिकित्सकों की कमी नजर नहीं आती। सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी की बड़ी वजह उनमें भर्तियों पर गंभीरता से ध्यान न दिया जाना है।
ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों की कमी दूर करने के मकसद से नियम बनाया गया था कि चिकित्सा की पढ़ाई के बाद हर डाक्टर को कम से कम एक वर्ष ग्रामीण इलाकों में जाकर सेवा देनी होगी, मगर उस नियम का गंभीरता से पालन नहीं हो पाता है। हर डाक्टर शहर में रहना चाहता है। वहां उसे कमाई के अधिक मौके नजर आते हैं। इन स्थितियों में शीर्ष अदालत की टिप्पणी को न केवल मेडिकल कालेजों में खाली पड़ी सीटों, बल्कि व्यापक अर्थ में लेने की जरूरत है।
चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले को लेकर इसीलिए अधिक संघर्ष देखा जाता है कि वहां से निकलने के बाद युवाओं को एक तरह से रोजगार की गारंटी होती है। वे निजी तौर पर भी अपना चिकित्सालय खोल कर अच्छी कमाई कर लेते हैं। मगर चिंता उस बहुसंख्यक आबादी तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने को लेकर है, जो अपने उपचार पर पैसे खर्च कर पाने में सक्षम नहीं है। फिर, बहुत सारे योग्य चिकित्सक बेहतर वेतन और सुविधाओं के मोह में दूसरे देशों का रुख कर लेते हैं।
यही वजह है कि अनेक रोगों के विशेषज्ञों की भारी कमी बनी हुई है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान की कमी को लेकर भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। ऐसा भी नहीं कि ये सारे पहलू सरकारों की नजर से ओझल हैं, मगर तमाम दावों के बावजूद चिकित्सकों की कमी को दूर करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बेहतर करने आदि को लेकर उल्लेखनीय कदम नहीं उठा पा रहे है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
*डॉ नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।