एआई की असली ताकत को सही इस्तेमाल करने के लिए भरोसे और सुरक्षा नियम जरूरी–अनिल अरोड़ा
टेक एक्सपर्ट अनिल अरोड़ा बोले टाईकॉन 2025 में: एआई से जीआई त,क कंप्यूटर पहले से कहीं ज्यादा इंसानी दिमाग की जगह लेने की होड़ में
चंडीगढ़: – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव अब इंसानों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए भरोसे और सुरक्षा से जुड़े नियमों को मजबूत करना जरूरी है ताकि यह बिजनेस और समाज के लिए फायदेमंद साबित हो सके। ये विचार माइक्रोसॉफ्ट के सीनियर सॉल्यूशन्स विशेषज्ञ अनिल अरोड़ा ने टाईकॉन 2025 के पहले दिन एआई अनलॉक्ड – मास्टरक्लास ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ सत्र के दौरान व्यक्त किए।
टाईकॉन चंडीगढ़ देश के जाने-माने उद्यमियों और विशेषज्ञों की पहल है, जो नए और युवा स्टार्टअप्स को मेंटरशिप, नेटवर्किंग, शिक्षा, इनक्यूबेशन और फंडिंग जैसी सुविधाएं देकर आगे बढ़ाने का काम करता है। इसका 10वां संस्करण होटल हयात रीजेंसी, चंडीगढ़ में आयोजित किया जा रहा है।
1950 के दशक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की शुरुआत से लेकर 2025 में जेनरेटिव इंटेलिजेंस (जीआई) तक की अविश्वसनीय यात्रा को दर्शाया गया, जहां अब मशीनें न केवल देख, सुन और बोल सकती हैं, बल्कि याद रख सकती हैं और सोच भी सकती हैं।
एआई समान अवसर प्रदान करने में मदद करेगा और यह एक बेहतरीन संतुलनकारी तकनीक बन सकता है। अरोड़ा ने यह कहते हुए जोर दिया कि एआई की पहुंच को बढ़ाने और डिजिटल विभाजन को कम करने के लिए भरोसे और सुरक्षा को मजबूत करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। अरोड़ा ने कहा कि एआई की असीमित क्षमताएं कई ठोस चुनौतियां और खतरे भी पैदा करती हैं। इनसे निपटने के लिए उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और सुरक्षा का खास ख्याल रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि व्यवसायों को सफल होने के लिए एआई को अपनाने की संस्कृति विकसित करनी होगी। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एआई इंसानी बुद्धिमत्ता की नकल कर सकता है, लेकिन वह कभी भी इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले सकता।
अरोड़ा ने चेताया कि इंसानी दिमाग की सोचने और समझने की क्षमता अद्वितीय है, और इसे बदलने की कोई भी कोशिश गंभीर खतरों से भरी हो सकती है। (रोशन लाल शर्मा की रिपोर्ट)
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